Sunday, 24 October 2021

चांद और सूर्य

अपने घर में बैठा प्रभु उस अंगूठी की ओर देख रहा था,
कितनी आसानी से तनुजा ने वो वापस कर दी थी 
जिस अंगूठी को खरीदने के लिए उसे एक साल लगा 
तनुजा ने एक बार देखा तक नहीं
' ये क्या है इसमें गोल्ड कितना कम है
राज को देखो कितनी सुंदर हीरे की अंगूठी दी है
उसने प्रिया को और तुमसे एक अच्छी सी
सोने की अंगूठी भी नही लाई गई
अरे तुम्हारे साथ ही तो इंजीनियरिंग की थी
तुम्हारे साथ ही तो उसने जॉब ज्वाइन की थी
देखो कहां पहुंच गया और तुम्हें देखो'

प्रिया का कहा हर शब्द उसे शूल की तरह चुभ रहा था
मन कसोट चुका था सांस लेना मुश्किल हो रहा था
 ठीक ही तो कह रही थी वो, उसके सभी साथी अच्छी कंपनियों में बड़े-बड़े पैकेज ले रहे थे
सबके पास आलीशान गाड़ी और बंगले थे
और प्रभु कुछ नही कर पा रहा था|


कमरे में बैठे उसको घुटन होने लगी छाती में कुछ भार आने लगा उसे बस बाहर निकलना था उसे कहीं जाना था कहां पता नही|

अपने जूते पहन वो निकल पड़ा, न कमरा बंद करना याद रहा न लॉक लगाया बस दौड़ता ही जा रहा था
ट्रैफिक का शोर गाडियों का हॉर्न कान पर पड़ता तो था पर सुनाई नही देता सुनता तो हर वो शब्द जो उसके जहन में बस चुका था

"तुम्हारा पढ़ाई में ध्यान क्यों नही है अपने दोस्तों को देखो कितने अच्छे माक्स आते हैं"

"अरे कभी तो लाइफ में कुछ कर के दिखा कब तक बाप के पैसों पे पड़ा रहेगा"

"अपने भाई से कुछ सीख तेरी उम्र में घर बना लिया था उसने"

" राजीव अपने मां बाप को पेरिस ले जा रहा है तूने कभी लोखनवाड़ा देखा है"

"लाइफ में कुछ बनना है या नही या जिंदगी भर मेरी छाती से बंधा रहेगा"

"अगर खर्चा करने की औकात नही थी तो क्या सोच के प्रपोज किया था मेरे सारे दोस्तों के ब्वॉयफ्रेंड महंगे महंगे गिफ्ट लाते हैं तुमसे अच्छी जगह डेट पे भी नही लाया जाता"

"भाई तेरी औकात ही क्या है जो अपना काम करने चले हो गूगल की नौकरी छोड़ एंटरप्रेन्योर बनेंगे अबे स्पेलिंग भी पता है देवेश को देख तेरा जूनियर है सीईओ प्रमोट हुआ है"

दोडते दोड़ते कहां जा रहा था पता नही थोड़ी देर में उसने खुद को शिखरचंडी की चढ़ाई में पाया ऊपर कुछ दूर में ही माता का मंदिर था और सामने गहरी खाई

कितनी शांति थी, इस ओर बस कुछ कदम और फिर यह आवाजें कभी उसे न सताएंगी 

जो मां जन्म देते ही छोड़ चली थीं बस कुछ ही समय में उसकी गोद में सिर रख के सो जाएगा वो कदम बढ़ाने ही वाला था की पीछे से एक काप्ती करहाती आवाज ने उसे बुलाया

"अरे बेटा थोड़ा ठहरो प्लीज कुछ दया करो"

उसने पलट के देखा तो एक बुजुर्ग महिला लाठी के सहारे चढ़ाई चढ़ती आ रही थी एक पैर बेजान था और दूसरे की ताकत भी कम भी पीली चादर ओढ़े किसी तरह घिसत्ते हुए चढ़ाई चढ़ रही थी 

उसको देख प्रभु का दिल भर आया हाला ही शिखर चंडी की चढ़ाई ज्यादा नही थी बस जमीन से ३ km पे मंदिर था फिर भी बुढ़िया इस हाल में वो चढ़ाई नही चढ़ सकती थी यह बात तह थी
तुरंत उसने अपनी जेब टटोली और पाया की वो कुछ भी पैसे नही लाया था 

"माफ करना माता मेरे पास देने को कुछ नही"

"अरे बेटा हाथ तो है न थोड़ा बुढ़िया को हाथ ही दे दो 
उस चट्टान के पास बैठा दो बस"

प्रभु ने माता का हाथ पकड़ा और उन्हें एक ओर अच्छे से बैठा दिया एक अलग सा तेज था उनके चेहरे में मानो अनेक दीपक एक साथ जल पड़े हों, दूध सा सफेद चेहरा झुर्रियों से भरा था, आंखों में मोतिया बिंद की सफेदी दिख रही थी, माता अच्छे से देख नही सकती थी यह बात प्रभु समझ चुका था फिर भी उनकी सुंदरता देख प्रभु उन्हें बस देखता ही रह गया

"खाली जेब मंदिर जा रहे हो बेटा, अच्छा है माता के दरबार में बिना कुछ लिए ही जाना चाहिए खाली हाथ जाओगे तभी झोली भर के आओगे"

"में मंदिर नहीं जा रहा था" प्रभु ने धीरे से कहा

"ओह फिर तो यहां का सुर्योद देखने आए होगे में भी उसी के लिए आई हूं ५ वर्ष की थी तबसे पिता जी के साथ रोज मंदिर आति थी और सूर्य उदय देखती थी अब मंदिर तक पहुंचने की ताकत नही बची तो यहीं से देख लेती हूं
वो देखो कितना सुंदर दिख रहा है सब कुछ, बादलों के पीछे छिपा वो सूर्य सबसे सुंदर सबसे अलग"

प्रभु ने पूर्व की ओर देखा न सूरज था ना बादल, वो समझ गया माता कुछ देख नही सकती इसी लिए इस उमर में सूर्य की कल्पना कर रही है जिसको बचपन से देख रही हैं वही दिख रहा है

"जानते हो बेटा आकाश में देखो तो अनेक बादल दिखेंगे रात हुई तो सितारे भी दिखेंगे पर कुछ भी कर लो चांद और सूरज एक ही हैं और इनकी आपस में कोई बेर भी नहीं
सूरज न हो तो चांद इतना शीतल कर देगा की जीवन न होगा
केवल सूर्य हो तो इतनी ऊष्मा होगी की जीवन ना होगा इसी लिए जीवन के लिए दोनो का होना जरूरी है
न चांद सूर्य बन सकता है न सूर्य चांद दोनो अपनी अपनी जगह अपना अपना कार्य कर रहे है"

बैठे बैठे माता ने बहुत बड़ी बात कह दी थी प्रभु सोच में पड़ गया माता कह क्या रही है

"खेर छोड़ो मेरी उमर में बक बक करने की आदत पड़ जाती है
मेरा एक काम करोगे बेटा"

"बताइए"

"जानती हूं तुम मंदिर के लिए नही आए हो किंतु मेरे लिए एक बार चले जाओगे मेरा जाना तो संभव नही किंतु मेरी और से यह सिक्का माता के चरणों में रख देना"

ऐसा बोल कर उन्होंने एक छोटा सा सिक्का प्रभु के हाथों में रख मुट्ठी बंद कर दी 

प्रभु कुछ न बोला और चुप चाप मंदिर की ओर चल दिया माता द्वारा बोला हुआ हर शब्द उसके मस्तिष्क में घूम रहा था सूर्य की चांद से क्या बराबरी दोनो अलग ही तो है चांद क्यों ऊष्मा पैदा करे सूर्य क्यों शीतल हो, यही सब सोचते सोचते कब मंदिर पहुंचा पता ही न चला

मंदिर में प्रवेश कर उसने सिक्का माता की मूरत के चरणों में रख दीया और पलट के चल पड़ा की पंडित जी ने आवाज लगाई

"अरे बेटा क्या कर रहे हो"

प्रभु ने पलट के देखा तो पंडित जि ने वो सिक्का उठा के फिर से उसके हाथ में रख दिया

"ये सिक्का कहां से मिला तुम्हें"

पंडित जी का सवाल थोड़ा अजीब लगा फिर भी प्रभु ने उत्तर दिया

" मेरी मां ने दिया था मुझे" शब्द उसके मुंह से अपने आप निकल गए

"अच्छा तभी तुम्हें नही पता यह क्या है
बेटा परसाद का भोग किया जाता है उसे पुनः मंदिर में नही चढ़ते
यह सिक्का बरसों से माता पे परसाद रूप में भक्तों को दिया जा रहा है,
इसको हमेशा अपने पास रखने से माता का आशीर्वाद सदा भक्तों पर रहता है
इसकी कीमत अनमोल है इसे इस प्रकार मत छोड़ो
यदि माता में भक्ति नही तो इसे अपनी मां को वापस कर दो अन्यथा किसी साहूकार से इसकी कीमत ले लो 
किंतु इसे मंदिर में छोड़ माता का अपमान मत करो"

ऐसा कह कर पंडित जी वहां से चले गए 
प्रभु ने सिक्का ध्यान से देखा वो वाकई अनमोल था मानो सोने का बना हो 
प्रभु दौड़ कर उस जग पहुंचा जहां उसने माता को छोड़ा था किंतु वहां न माता थी न उनका कोई निशान था तो बस एक अति सुंदर सूर्य उदय 

बादलों ने सूर्य को ढक रखा था कितनी उसके प्रकाश को कोई छुपा नहीं सकता था अपने तेज से सूर्य पूरे आकाश को प्रकाश वान कर रहा था रात्रि घट रही थी दिनकर चढ़ रहा था और माता की कही हर बात प्रभु को समझ आ गई थी

उसने मां का साथ छोड़ा था पर मां सदा उसके साथ थी

जीवन के हर उतार चढ़ाव में उसने क्या प्राप्त किया इसके कोई फर्क नही पड़ता जिस मार्ग पे वो चल रहा था वो कितना सुंदर था

वही बैठा प्रभु देख रहा था वो हरे भरे पेड़ वो सुंदर नजारे वो सुहाना मौसम यह सब कितना सुहावना था और जीवन में चाहिए ही क्या

वहां से अपने घर की ओर चला तो सब साफ दिख रहा था यह मार्ग कितना सुंदर है लोग कितने अच्छे हैं कुछ लोग साथ चाय रहे थे कुछ ने बीच में मार्ग बदल लिया 
रास्ते अलग थे मंजिल अलग थी सब कुछ समय के लिए मिलते फिर बिछड़ जाते और जीवन इसी प्रकार चलता जाता मंज़िल पे पहुंच के क्या मिलेगा पता नही पर रास्ता अपना है इसका आनंद लेना है और सूर्य चांद में बराबरी है ही नही

©Dr Sanchit Bhandari
Insta@drsanchit2212

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