GURU: THE TEACHER
AVADHUTA DATTATREYA (BHAGAVATA MAHAPURANA,11.7)
गुरु, जीवन बीत जाता है उस गुरु की तलाश में जो हमारा मार्गदर्शन कर सके। जो ब्रह्मा हो जो विष्णु हो और जो महेश भी हो आखिर कौन है वो गुरु जिसकी हमें तलाश कौन है वह जिसके लिए वेद चीख -चिख कर बखान करते है की
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु : गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरु : साक्षत्पराम्ब्रह्मा तस्मे श्री गुरुवेनमः।।गुरु की सर्वश्रेष्ठ व्हाख्या स्कंध्पुरान गुरुगीता में है।
गुकाराश्वान्धकारो हि रुकारस्तेज उज्यते।
आज्ञानग्रासकं ब्रह्मा गुरुरित्यभिधीयते।।
'गु:' अर्थात अंधकार 'रु:' अर्थात नाश करने वाला इसलिए जो अंधकार का नाश करता है वह ही गुरु है।
गुरुर्ब्रह्मा (ब्र= अखंड ब्रह्माण्ड ह्मा= उत्पत्ति ) गुरुर्विष्णु:(विष्व = समस्त संसार अनु = भोजन ) महेश्वर:(मह:=विनाश एश=स्वामी)
इस संसार की उत्तपत्ति पालन था विनाश में ही गुरु अर्थात अज्ञान रूपी अंधकार के नाश करने वाले ज्ञान का वास है। एसा ज्ञान जो स्वयं में ही साक्षात् परमात्मा है और उसी ज्ञान को मेरा नमस्कार है।
अपने गुरु की तलश में समस्त संसार में घूमता रहता है परन्तु वह यह नहीं जनता की सत्य जानने की इच्छा रखने वालो के लिए तो समस्त संसार ही गुरु है 'विश्वम गुरुर मम ' जैसे अवधूत दत्तात्रेय के २४ गुरु।
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